नदी
मैं नदी जीवनदायनी
तप्त हुई,पर उड़ चली
रिमझिम बरसी हर तरफ
खिलखिलाती बह चली
बिखेरती धन धान्य हर तरफ
पर्वतों को चिरती चट्टानों से टकराती
अनवरत कोशिश करती,उमड़ चली
मजि़ल की ओर
जब कभी जकड़ी गयी
प्रचंड बन मैं लड़ पड़ी
विथ्वंस मैं भी दे गयी वरदान नहरों के समान
मिल गयी सागर में
अस्तित्व अपना भूला दिया
सबने कहा ये क्या किया ये क्या किया
मुझको पता है खो के भी
मैंने खुदी को पा लिया ।।